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पष्टमांग-माता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध488
पयारोवा थुण्णिय विमलकणगपयरग वडिंसग मउड, कडाडोव दंसणिजो, अणेगमा णिकणगरयण पहकर परिमंडिय, भत्तिचित्तविणिउत्तमणुगुणजणिय हरिसे पेखोलमाण वर ललियकुंडलुजलिय वयणगुणजणि सोमरूवो उदितोविवकोमुईणी सापस णिच्छरगाउजलिउमझभागत्थो गयणाणंदो मरयचंदो दिवोसहिपजल्लुजलियं
दसणाभिरामो,उउलच्छिसमत्तजाय सोहो पइट्टगंधडुयायाभिरामो मेरुविवणगवरो विउ. 1 निर्मल सुवर्ण के मतररूप कर्ण आभरण धारण कीये, मुकुट के आटोप से दर्शनीय हुवा मुख जिसका,
प्रकार मणिसुवर्ण गरनों के समुह से सुशोभित हुवे वैकंदोरा पहिन कर हर्षित हुवा, और भी हलते हुए प्रधान ललितं मनोहर कर्णपूर कुंडल का युगल से उद्योत हुवा उस देवता का मुख सौभ्यता से मनोहर हुवा, जैसे-उदय पाती हुई कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में शनैश्चर व अंगारक ( मंगला ) ये दोनों ग्रहों जैसे उज्वल, देदीप्य मान तेजवंत व कुंडल के आकार समान देखता है वैसे ही उस देवता का रूप आखोंको मानंद करने वाला देखता है, व चंद्रमा जैसा है, तथा-दीव्य प्रधान औषधि के प्रचलित मान से मुकुटादि से उद्योदित दर्शन से मनोहर होने लगा, ऋतु की लक्ष्मीरूप सब ऋतु के पुष्पों से सुशोभित शोभा उत्पम हुइ प्रकृष्ट गंध से सुशोभित हुवा, सब पर्वतों मेंरू पर्वत जैसा सुदर ऐसा विचित्र प्रकार के वेष धारेन
48+ उलिप्त (मेघ कुमार) का प्रथम अध्ययन 4884
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