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सत्र
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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी:
चिट्ठइ, तं सेयंखलु मम अभयकुमारस्स अंतिए पाउब्भविचए एवं संपेहइ २त्ता उत्तर पुरस्थिमं दिसीमागं अवक्कमइ २ वेउन्बिय समुग्घाएणं समोहण्णइ २संखिजाइ जोयणाइ दंडं निसरए २त्ता तंजहा-रयणाणं,क्यराणं, वेरुलियाणं, लोहियक्खाणं, मसारगलाणं, हंसगन्माणं पुलगाणं, सोगंधियाणे, जायरूवाणं, अंकणं अंजणाणं रजक पुलागाणं, जोइयाणं अंजण पुलागाणं फलिहाणं, रिटाणं; अहावायरे पोग्गले परिसाडेइ अहासुहमे पोग्गले परिगण्हइ, अभयकुमारमणुकंपमाणोदेवो पुत्रभवजणियणेहपियवहुमाणजाय:
मोयंतओ विमाणवरपुढरीयाओ रयणुत्तमाओ धरणीयलगमण तुरिय संजणिय, मण के पुद्गलोका क्रेय बनाकर भनेक प्रकारके रहनोंके पुद्गलों ग्रहण कीये. जिनके नामः१ ककेंतन रत्न २ पज रत्न ३ बैडूर्य रत्न ४ लोहिताक्ष रत्न ५ मपारमल्ल रत्न ६ इंसगर्भ रत्न पुलाक रन ८ सौगंधिक रत्न ९ जातरूपरत्नर ० अंकरल ११ अंजनरत् रजत पुलाक रत्न ज्योतिषरत्न १४अंजन पुखाक रत्न २५फटिक रत्न और१० रिष्ट रस्न यों सोलह प्रकारके रत्नों के यथा बादर असार पुगलों छोडकर यथा सक्ष्म सार पुगलों ग्रहणकर अभय कुमार की अनुकंपा वाला पूर्व भव का उत्पन्न हुवा स्नेह व बहुमान बाला देव अपने श्रेष्ट पौंडरिक विमान से पृथ्वीपर जाने के लिये शीघ्र नीकला उस देवताने हलाते हुये विमल है।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला एखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी"
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