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________________ ताधर्म कथा का प्रथम श्रुत्स्कन्ध 480 48 षष्टमांग-बार पडिलेहैइ २ ता दन्भ संथारगं दुरुहइ २ ता, अट्ठमभत्तं पगिण्हइ ता पोसह-- सालाए पसह बंभयारी जाव पुव्वसंगतियं देवं मणसीकरेमाणे चिट्ठइ ॥ ४८ ॥ तएणं तस्स अभयकुमारस्स अट्ठम भत्ते परिणममाणे पुत्वसंगइयरस देवस्स आसणं चलइ॥तएणं पुत्वसंगइए सोहम्मकप्पवासीदेवे आसणं चलियं पासात्त ओहियंपउज्जति, तएणं तस्स पुन्वसंगइयस्सदेवस्स अयमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुपत्थिए समुपज्जित्ता, एवं खलु ममं पुथ्वसंगइए जंबुद्दीवे दीवे दाहिण भरहेवासे रायगिहेणयरे पोसहसालाए पोसहिए अभयणामं कुमारे अट्ठमभत्तं गिण्हत्ताणं ममं मणसीकरमाणे २ गया और पोषध व शाला प्रमार्जी. उच्चारप्रस्रवण भूमि देखी, दर्म संथारा की प्रतिलेखना की, और अष्टम भक्त ग्रहणकर के पोषध शाला में ब्रह्मचारि यावब् पूर्व संगतिवाला देव का स्मरण करते रहे ॥, ४८ ॥ इस तरह अप्रम भक्त तप में करने से पूर्व परिचय वाला देवका आसन चलायमान हवा. इस संगति वाला सौधर्म देवलोक वासी देव अपना आसन चलाय मान जानकर अवधिज्ञानप्रयुजा और ऐसा अध्यवसाय हुवा कि-इस जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत क्षेत्र में रामगृह नगर में मेरा पूर्व परिचित वाला अभय कुमार अष्टम भक्त तप करके मुझे यादकी कर रहाहै इससे उनकी पासजाना मुझे श्रेय है यों विचार कर ईशान कौन में जाकर वैक्रेय समुद्धात से संख्यात योजन का देढ कीया फीर जीव के मदेश - काया . 4882 उत्क्षिप्तं (मेघ कुमार) का प्रथम अध्ययन 488 , Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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