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4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
करित्तए णण्णत्थ दिव्वेणं उवाएणं । अथिर्ण मम सोम्मकप्पवासी पुत्वसंगइए देवे महढ़िए जाव महासुक्ख; तसेयं खलु ममः पोसहसालाए पोसहितस्स बंभयारिस्स उमुक्कामणिसुवण्णरस, वयगय मालवण्णम विलेवणस्स, निखित्तसत्थ मुसलस्स, एगस्स अवीयस्स दभसंथरोवगयस्स अट्ठमसत्तं परिगिण्हत्ता पुन्वसंगतियंदेवं मणसीकर माणस्स विहरित्तए ॥ तएणं पुत्रसंगतिए. देवे मम चुल्लमाउयाए धारणीदेवीए अयमेयाः रूवे अकालमेहेस दोहलं विणेहंति; एवं संपेहेइ २ न्ता जेआमेव पोसहसाला तेणेव
उवागच्छइ २. पोसहसासे पमज्जइ २: उच्चारपासवणभूमी पडिलेहेइ र, दंभसंथारयः । यावत् उत्पन्न हुवा कि मनुष्य के ऊगय से मेरी छोटी धारणी माता का अकाल मेघ. का दोहला पूर्ण al होला शक्य नहीं है; परंत भोई देव के उपाय से पूर्ण होगा, मेरा पूर्व परिचयवाला महर्द्धिक यावत् महा सुखवाला सौधर्म देवलोक में रहनेवाला देव है इसलिये पोषधशाला में ब्रह्मचर्य व्रत सहित मणि मुवर्णादि विवर्जित, माला वर्ण विलेपन रहित, शस्त्र सूशलादि विना अकेला अद्वितीय दर्भ संथारा पर अठम. भक्त (तेला ) का तप करके पूर्व परिचयबाला देव को याद करना मुझे श्रेय है. और वह पूर्व परिचयवाला देव मेरी छोटी धारणी माता का अकाल मेघ का दोहल. पूर्ण करेगा. ऐसा विचार करके पोषधशाला.में,
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामसादजी*
भावार्थ
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