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षष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 480
अहणं तहा करिस्सामि जहाणं मम चुल्लमाउयाए धारणीएदेवीए अयमेया स्वस्त अकाल दोहलस्स मणोरह संपत्ती भविस्सइ, तिकटु, सेणियरायं तहिं इट्ठाहिं कंताहि. जाव समासासेइ ॥ ४६ ॥ तएणं से सेणिएराया अभएकुमारणं एवं वुत्तसमाणे. हतुढे जाव अभयकुमारं सक्कारेइ सम्माणेइ २ पडिक्सिज्जेइ, ॥ ४७ । तएणं से. अभयेकुमार सक्कारिए समाणिय पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्सरण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणामेवसएभवणे तेणामेव उवामच्छइ २ सिंहासणे णिसण्णे॥ तएणं तस्स अभयकुमारस्स अयमेयारूये अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्ता-णो खलु सक्का माणुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीदेवीए अकाल मणोरहं संपत्ति
HAB8% उत्क्षिप्त ( मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन
भावार्थ
को ऐमा बोले. अहो तात ! तुम आर्तध्यान करना नहीं. मै मेरी छोटी माता धारणीदेवी का अकाल मेघ का दोहल संपूर्ण होवे वैसा करुंगा. यों कहकर श्रेणिक राजा को इष्टकांत यावत् आश्वासन दीया ॥ ४६॥ अभयकुमार के ऐसे वचन सुनकर श्रेणिक राजा हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुवा और अभय कुमार को सत्कार सन्मान देकर विसर्जन कीया ।। ४७॥ तब श्रेणिक राजा से सत्कार कराया हुवा, सन्मान कराया हुवा व विसर्जन कराया हुवा अभय कुमार श्रेणिक राजा की पास से नीकल कर स्वतः के भुवन में आया और वहां सिंहासनपर बैठा. वहां उनको ऐसा अध्यवसाय
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