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+ अतुमादक-बाल ब्रह्मचारी मुान श्री अमालक कायजा
भवमाणा विहरति ॥ ३३ ॥ तरसणं जिगदत्तस्मपुत्ते महाएरियाए अत्तए सागर
णामं दारएंसकमाल जाव सरो॥ ३४॥ ततेणं से जिवादत्ते सत्यवाह अन्ना - कयाति मयातो गिहातो पाडणिक्खमति २ ता सागरदत्तस्म सस्थवाहस्स गिहस्म
अदूरसामतेणं बीतीवयंति ॥ ३५ ॥ इमंचणं सूमालिया दारिया व्हाया "चडिया - जाव परिवुडा उपि आगासतलगति कणग तं दुमएणं कीलमाणी २ विहरति
॥ ३६॥ ततेणं से जिणदत्ते सत्यवाहे सुकमालियं दारियं पासंति सुकमालय दारियं पासत्ता: सुकमालियाए दारियाए । रूयेय जाव उबिट्ठा जायति विम्हए
कोटुंबिय पुरिसे. सदावति २ ता. एवं वयासी-एसणं देवाणुप्पिया ! कस्स भोगवती हुई वि रती थी ॥ ३३ ॥ उम जिनदत्त का पुत्र व भद्रा भार्य का आत्मना सागर नामक पत्र था. यह मुकुगर यावत् सुरूप था ॥ ३४ ॥ एकदा जिनदत्त सार्थवाह अपने गृह में नीकलकर मागग्दत्त सार्थगह के घर की पाम मे जा रहा था ॥ ३५ ॥ इस समय सकपालिका पर्ष स्नान कर अपनी बेटि काओं की माथ यावत् परवरी हुई प्रासाद की चांदनी में मुवर्णपय गेंद से क्रीडा कर रही थी ॥ ३६॥ सुकुपालिका पुत्री को आती हुई देखकर जिनदत्त शेठ एस के रू। में यावत् उत्कृष्ट शरीर में विस्मित हुए. कीदमक पुरुषों को बोलाकर उसने पूछा अहो देवान प्रिय! यह किस की पूर्वी है और इस का नाम
काजाचादर लाला मुकदेवमहायजीनामाज!.
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