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+ षष्टांङ्ग .ताधर्षःथा का प्रथम श्रमसान्ध
दारिया किंवा नामधेजं से ॥ ३७ ॥ ततेणं से कोर्टविय पुरिसे जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एव बुत्तासमाण। हट्टतुटा, करयल जाव एवं बयासी-एसणं देवाणुप्पिया! सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स धूया महाए अत्तया, सुकुमालिया नामं दारिया सुकुमाल पाणिपाया जांब उकिट्टा ॥ ३८ ॥ ततेणं से जिणदत्ते सत्थवाहे तेसिं कौटुंबियाणं तिए एयम? सोचा, जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ २ ता पहाते जाव.. मित्तणति संपरिघुड़े चंपाए णयरीए मझं मझेणं जेणेव सागरदत्तस्सगिहे तेणेव .
उवागए ॥ ३९ ॥ ततेणं सागरदचे सत्थवाहे जिणदत्तं सत्यवाहं एजमाणं क्या है ? ॥३७॥ जिनदत्त सार्याड के ऐसा कहनेपर कौटुक पुरुषों इष्ट तुष्ट हुए और हाथ जोडकर ऐसा बोलने लग कि अहो दवानुमिया यह सागरदत्त सार्थवाह की पुत्रों व भद्रा भार्या को आत्मजा सुकुमालिका नामकी कन्या है. इन के हाथ पांव सुकोमल है यावत् उत्कृष्ट शरीरवाली है ॥ ३८ ॥ उन कौटुबिक पुरुषों को पास से ऐना सुनकर जिनदच सार्थवाह अपने गृह आया.. वहां स्नान ..करके मित्रज्ञातिजनों को साथ लेकर च नगरी की पंच में होते हुने सागरदत्त सार्थवाइ के गृह आया. ॥ ३९. जिनदत्त सार्थशाह को ना. हुआ इंसासागर सलवार ओमानसिा हुआ. और उन को वो के लिए
छौपदी का सोलहवा अध्ययन
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