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H+ पटवताधर्मस्या का प्रथम श्रुतसन्ध 47
गुगणिप्फ गं गामधे जं करेंते जम्हाणं अम्हं एसा दारिया मुकमाल गयतालुय समाणा तं होउगं अम्ह इमीसे दारियाए नामघज कुमाल या २४ ततेणं तीमे दारियाए अम्मापिणे णामधजं सुकुमा लेयत्ति ॥ २९ ॥ तलेग सा कमालिया दारिया पंचधाई परिग्गाडेया तजहां-वीरधाइ जाव गिरिकस्मट्रीणाइव चपगलया निवाया जिवघयंसि जाव पारड्ढइ ॥ ३० ॥ तएणं सा सुकुमालिया दारिया उम्मक बालभात्रा जाव रूपेण जाणणय लावण्जणय उकिट उछिद्र सरीरा ज यायावि हत्या ॥ ३१ ॥ तत्थणं चराए गयरी जिगदसे नामसत्थवाहे परिवसद
अद्वै।।३२॥ तस्तणं जिणदत्तस्त भदाभारिया इट्ठा जाव भ.णुए कामभोगे पच्च गुरुम १६प का गुग निष्पन्न नाम दिया. हमारी यह पुर्व सुकमार व हाथी के तालो ममान रक्त है इस से पुना का नाम मुसिका हवो ॥ २७ ॥ उस पुत्र की क्षार धात्री आदि पांच धात्रियों रक्षा करन
गी. और जगदमा की चा लता किसी व्याघात विनः वृद्धि पानी है वैभही वृद्ध पाने लगी। ॥ ॥ अब वह सकालेका पुर्व बाल भ.व में मुक्त होकर यावत् रूप, यवन व लावण्य से उत्कृष्ट व उत्कृष्ट शरीग्बल हुई ॥ ३१॥ वहां चंग नगरी मिन्दस नाम का साथ रहता था. वह ऋद्धिवंत यारत् अपराभूत था ॥ २२ ॥ म जिनदत्त को भट्रा भाई थी, वह इष्ट यावत् मनुष्य संबंधी कामयोग
+2+द्रपदी का मोलहवा अध्ययन
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