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________________ सूत्र अर्थ 48+ षष्टांद्र ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम थुतस्कन्ध नगरी उच्च पासइ तव उग्गाहति २ ता तहेव धम्मघोस थेरं अपुच्छइ २ जाव न च मज्झिम् कुलाई जावं अडमाणे जेणेव नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेब अणुवि ॥ १२ ॥ ततणं सा नागसिरी माहणी धम्मरुई . अणगारं एजमाणं सालतिरूपं तित्त कडुयस्स बहु पेहा पडणटुगाए २ ता तस्स एउट्ठेति २ जेणेव मतघरे तेणेव उवागच्छइ २त्ता सालतिथं तित्तं कड्य - बहुणेह धम्मरुइस्स अणगारस्म पडिग्गहंसि सत्यमेव ततेणं मे धम्मरुई अणगारे अहापजत्त त्तिकद्दु गिहातो पडिणिक्खमति २त्ता चंपाए जयरीए मज्झं मज्झणं पडिणिक्खमइ २त्ता जेणेव हट्ठ णिस्सरति ॥ १३ ॥ नागसिरीए माइलीए. i Jain Education International +8+ द्रौपदी का सोलाना अध्ययन अभिग्रह धारनकर घघोष स्थविर की आज्ञा लेकर चंपा नगरी के ऊंच नीच व मध्य कुल में यावत् परिभ्रमण करते नागश्री ब्राह्मणी के घर में प्रवेश किया || १२ || अब नागश्री ब्राह्मणी धर्माचे अनगार को आते हुब देखकर उल कटुक तुम्बि का विकास वाला शाक देने का भाजन जानकर दृष्ट तुष्ट हुई. अपने आसन से उठ कर भोजन गृह में गई, और स्ने वाला कटुरुतु का सब शाक धर्मरू च अनगार के पात्र में डाल दियां ॥ १३ ॥ धर्मरूचि अनगार यथापर्यत ( चाहिये उनने ) जान कर नागश्री शमी के गृह मे नीकले और चंपा नगरी की बीच में होते हुये सुभूभाग यान में For Personal & Private Use Only ५६६ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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