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सूत्र
अर्थ
अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अपलक ऋषिजी
तेणे उचागच्छइ, कम्म संपउत्ताओ जायाओ ॥ ८ ॥ तेणं कालेगं तेणं समएणं धम्मघोस काम थर जब बहु परिवारा जेणव चंपा नाम पयरी जेणेव सूभूमि भाग उनाण तेणेव उवागच्छ २ त्ता अहा पडिरूवं विहरति ॥ ९ ॥ परसा जिग्गा धम्माकहिओ परिसा पडिगषा ॥ १० ॥ ततणं तेसिं धम्म घांसाणं थेसणं अंतेवासी धम्मरुई णामं अणगारे उराले जाव तेयलस्मे मासं मासेणं खमाणं विहरति ॥ १३ ॥ तले से धम्मरुई अणगारे मासखमण पारणगंसि पढमा पोरसीए सज्झायं करेति २ सा बीपाए मोरसीए एवं जहां मोयमसामी
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गृह आकर अपने २ कार्य में प्रवृत्त हुई. ॥ ८ ॥ उस काल उस समय में धर्मघोष स्थविर यावत् | बहुत परिवार सहित चंपा नगरी के भूमिभाग उद्यान में आकर यथ प्रतिरूप अवग्रह याचकर यावर विचरने लगे. ॥ ९ ॥ परिषदा वंदन करने को नीकली. धर्म सुनकर पीछी गइ ॥ १० ॥ धर्मघोष स्थर के अंतेवासी धर्म अनगार थे. वे उदार तपवाले यावत् तेजोलेश्यावाले थे. और (माममण की तपस्या करते हुवें विचरते थे | ११ || अब
धर्मरूचि अनग़ारने मामक्षमण के पारने
के दिन पहिले महर में स्वाध्याय की, दूसरे पहर में ध्यान किया वगैरह सब गौतम स्वामी जैते
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सरकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालामसादगी
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