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सूत्र
अर्थ
श्री अमोलक जी
42 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि
सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ २ जेणेव धम्मघोसा थेरा, तेणेव उवागच्छइ २त्ता धम्मघोर अदूरसामंते अण्णपाणं पडिलंहेइ अण्णपाणयं करयलांस पडिदमेति ॥ १४ ॥ ततेणं धम्मघोस थेरे तस्स सालातयस्स हावगाढस्स गंघेणं अभि भूयममाणा ततो सालाइयातो नेहावगाढाओ एगबिंदुयं गहाय करयांस आसादेइ तित्तगं खारं कडुयं अखजं अभोज विमभूर्ति जाणित्ता, धम्मरुइं अणगार एवं वयासी-जतिणं तुमं देवाणुपिया ! एयं सालतियं जात्र हावगाढं आहारोस ताणं तुमं अकालेचव जीवियाओ ववरोबिज्जासि; तं गच्छहणं तुमं देवाणुप्पिया इमं साळातियं एगंत मणावात अचिचे थंडिल परिटुबेति २ अण्णं फार्य एस णिज्जं
स्थविर की पास आये. धर्मवेष मुनि के पास अन्न व पानी की प्रतिलेखना कर उसे हाथेली में ले कर बतलाया ॥ १४ ॥ उस स्त शाक की गंध से पराभूत होने से घघोष अनगारने उस का एक बिन्दु हाथ में लेकर उस का आस्वादन किया. उन को क्षारयुक्त, कटुक, अखाद्य, अभाज्य, व विषमय जानकर धर्मरुचि अनगार का ऐसा कहने लगे कि अहो देवानुमय ! यदि तब इस कटुक तुम्बी के शाक का आहार करोगे तो बिना मृत्यु से तुम को मरना होगा. इस से अहो देवानुप्रिय ! इस शाक को एकांत लजा कर अचित्त भूमि में परिठा दो और दूसरा फ्रमुक एप.णिक आहार लाकर उसका आहार करो
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• प्रकाशक- राजा बहादुर लाला सुखदेवसहाय मज्विालाममादजी *
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