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चार मुनि श्री अमालक-ऋषी भवाइकालवा
ततेणं ते चरंगाय धणेणे . सत्यवाहेण एवं बुत्तासमाणा जाब चिटुंति ॥ ७ ॥तेर्ण धणे सत्थवाहे सोहणंति तिहि करण णक्खसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं -उवक्खडावेति २ ता मित्तणाति आमंतेत्ता भोयणभायावात २ ता आपुच्छति २ सगडी मागडं जोगावेति २ धपाओ णयरीओ. जिग्गच्छति २ ‘जाइविगिद्धेहि अद्धाणोहिं वसमाणे २ सहेहिं वसहिं पायराहिं अंगजणवयं मझं मझेणं जेणेव देसगते तणेव उधागच्छद २ ता संगडीसागडं मोयायेइ २त्ता मत्थानवेसं करेंति २त्ता
कोटुविय पुरिसे सदावति. कोडविय पुरिसे सहायता एवं वयासी- तुम्भेणं लोगों धमा माह के कथन अनुसार अंगउद्यान में रहे, ॥ ७॥ धमा सार्गवाई शुभ तीथी, करण नक्षत्र में विस्तीर्ण अशनादि बनाकर मित्र झालीयों को आमंत्रण कर भोजन नीम कर उन. को पुडकर गाडे गाईयों जोताकर चेपा नगदी बाहिर नीकला. और पार्ग में चलने हुए अच्छे आपस में प्रभात में नीमकर चलते हुए अंगदेश की बीच में कर देश के एक छेडे गया. और वहां गाडे गाडियों को छेड कर अपने साथियों का उनाग किया फीर कौटुम्बक पुरुषों को बोलाकर ऐमा कहा कि अहा देवानुमेय मेरे साथी के परब में शब्द से उद्ये पणा करो कि -आगामिक मार्ग विना की बहन का
प्रकाशक रामबहादर काला सम्बदन महायजी नालाप्रमादमा.
अर्थ
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