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________________ सूत्र 甯 4984 षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथमे सुन्ध तिकडु, दोपि तच घोसे घोमे २ मम एयमाणतियं पच्चविगह ॥ ततेगं ते कोटुंबिय पुरिसा जाब एवं वयासी हंदि मुकंतु भगवंतो चपाए नगरीए वत्यन्ना बहवे चरगा जाव पच्च पिणंति ॥ ६ ॥ ततेणं तेसिं कोटुंबिय पुरिमाणं अतिए एयमटु सोच्चा निसम्म चंपाए जयरीए बहवे चरंगाय जाब गिहत्थाय जेणेव घण्ण सत्थवाह तेणेव उवागच्छति ॥ ततणं धणे सत्थवाहे तेसिं चरगाणय जाव गिहत्था जय अच्छत्तगस्स छत्तं दलयति जाब पत्थयणं दलयति २ गच्छहण तुम्भे देवापिया ! चंगए जयरीए बहिया अग्गुजानासि ममपडिवालमाणा २ चिट्ठह उद्घोषणा करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो. तब कौटुम्बिक पुरुषों या त् ऐभी उद्घोषणा करने लगे. अहो देवानुप्रिय चंपा नगरी के नरक यावत् गृहस्थी सुनो ! धना सार्थवाह अछि नगर में विस्तीर्ण किरीयाना भरकर जाते हैं उप से जो कोई जाना चाहे उन को धन्नः सार्थवाह सब प्रकार की सहाय करेंगे यावत् सुख पूर्वक अद्वित्र नगर में पहुंचायेंगे यों उद्घोषणा करके उन को उन की आज्ञा पंछी देदी ।। ६ ।। कौटुम्बिक पुरूषों की पान से ऐसा सुनकर बहुत चरक यावत् गृहस्थी धन्ना सार्थवाह की पास आये. उनमें से जिसको छत्र नहीं था उनको छत्र दिया यात्रत् जिनकी पाम पथ्यद-भाता नहीं था उनको माता दिया. और कहा देवानुप्रिय ! चंपा नगरी की बाहिर अंग उद्यान में मेरी प्रतीक्षा करते हुवे रहो. वे Jain Education International For Personal & Private Use Only 4+ नंदी फल वृक्ष का परहवा अध्ययन 4+ ܕ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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