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________________ सूत्र अर्थ 4+पटताचपर्कथी का प्रथम श्रनस्कंध ल सत्थवाहस्स अन्नयाकयाइ, पुत्ररतावर कालसमयंसि इमेयारूवे अज्झत्-ए चिंतिए पत्थिते मणोगए संकप्पे समुप्यजित्या तं सेयं खलु मम विउलपणिय भंडगमायाय अहिछतनयरिं वाणिजाए गर्मि ए ॥ एवं संपेहेइ २ सा, गणिमंच ध रेमंच मेयजं पारिस्थिजं त्रिभंडगिण्इ २ सगडि सागडि सजेति २त्ता सगडि सागडं भरेंतिरत्ता कोटुचिय पुरिसे सहावेति २ चा एवं बयासी - गच्छहणं तुष्भे देवाणुप्पिया ! चंपाए नयरीए सिंघाड़ग जाब महापहेतु घोसेणं घोसह एवं खलु देवाणुपियाँ ! घण्णे सत्थवाहे अध्यवसाय, संकल्प व मनोगत भाव हुआ कि विस्तीर्ण किरीयान, मंड उपकरण वगैरह लेकर अहिछत्रा नगरी में जाना मुझे श्रेय है, ऐना विचार करके गीनती हो सके जैसे वगैरह चारों प्रकार के धान्य लेकर गाडे गाडियों मज्ज की, और कौटुंबिक परुषों को बोलाकर ऐसा बोले अहो देव नुप्रिय ! चं नगरी के श्रृंगाटक यावत राज मार्ग में ऐसी उद्धे षणा करो कि सार्थवाह वस्तीर्ण किरीयाने गैरह लेकर अहिछत्रा चाहते हैं, इस लिये जो कोई चरकौद्धमतानुसारी, चीरिक-मार्ग में पंडहुने धन अहा देवानुमिय ! नगरी में जाना पनेि वाले, चर्म खंडी वर्म का वस्त्र पहिनेन वाले, मोक्ष वृत्ति से आजीविका करने वाले पांडर रंग के वस्त्र पहनने वाले Jain Education International For Personal & Private Use Only 488+ नदीफ वृक्ष का पारहवा अध्ययन www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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