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________________ M 42 अनुवादक-पालनामचारों मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ॥ पञ्चदश अध्ययनम् ॥ जतिणं भंते ! समणणं भगवया महावीरेणं जाव सपत्तेणं चाहसमस्स जायज्झयणस्म अयमटे पण्णत्त पन्नरसमस्सणं भंते ! णायज्झयणस्स जाव संपत्तणं के अट्टे पन्नत्ते ? ॥ १ ॥ एवं खलु जंब ! तेणं कालंणं तेणं समएणं चपा णामं जयरी होत्था, पुण्णभद्द चइए जियमत्त राया ॥ २ ॥ तत्थण चपाए नयरीए धण्णे णामं मत्थवाहे हात्था अड्डे जाव अपरिभूए ॥ ३ ॥ तीसणं चपाए नयरीए उत्तर पुरच्छिमादसीमाए आहिछत्ता णाम जयरी होत्था रिद्धत्थामय समिद्धा वण्णओ॥४॥ तत्थणं आहछत्ताए नयरीए कणगकंऊ णामं राया होत्था महया वणतो ॥ ५ ॥ ततेणं तस्स धणस्स जब श्री श्रपण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञाता मत्र के चउदहवा अध्ययन का उक्त भर्य कहा तर पनहवा अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? ॥ १ ॥ अहा उ.म्बू ! उन काल उस समय में चंपा नगर्ग थी। उम में पूर्णभद्र चैत्य था, और जितशत्रु राजा राज्य करता था. ॥२॥ उम चंपा नगरी में धमा मार्थिवाह रहता था. वह ऋद्धिवंत यावत् अपराभून था. ॥ ३ ॥ उम चंपा नगरी मे ईशानन में रिपत्रा. नगरी थी. या ऋद्ध समृद्धि युक्त वगैरह वर्णन येोग्य थी. ॥ ४ ॥ उम अहिछत्रा नगरी में कनककत राजा राज्य करता था. वह भी वर्णन योग्य था. ॥५॥ एकदा पूर्व राषिधमा सार्थवाह को एसा '+काशक-राजाबहादुर थला मुखदेवमहायजी ज्वालामसाढणी+ કપ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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