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जाव संपत्तणं चाहसमस्स नायझयणस्स अयमढे पन्नसे ॥ तिमि ॥ १४ ॥ गाथा-जाव ण दुक्ख पत्ता माणभमं च पाणिणो ॥ पायं ताव " धम्मं गिण्हति
भावआ तेयलिमुयन्वं ॥ १ ॥ चौदसमं गायझयणं सम्मत्तं ॥ १४ ॥ * * तेतली पुत्र जैसे जब लग जीवों को दुःख प्राप्त नहीं होता है अथवा पानभंग नहीं होता है तब लग जीवों धर्म नहीं ग्राण करत ॥ ॥ यह चउदइया अध्ययन संपूर्ण हुभा ॥ १४ ॥ .
षष्ट झज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रतस्कन्ध 42
तेतली पुत्र का चउदहवा अध्ययन 48
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