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सूत्र
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तेयलिपुत्ते अणगारे तेणेत्र उवागच्छइ. २ ता, तेयलिपुत्तं . अणमारं वदई
मंसइ एयमटुं विणएणं भुजो २ खामेइ पच्चासणे पज्जुवासइ ॥ ६३ ॥ तएणं. से तेयलिपुत्ते अणगारे कणगझयस्म रणो तीसेय धम्म परिकहति ॥ ६५ ॥ तने से कणगझए राया तेयलिपुत्तस्स केवलिस्त अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म पंचाणुव्वतियं सत्तसिक्खावतियं सावधम्म परिवजति ममणोवासए जाए अभिगय जीवा जीवे ॥ ६५ ॥ ततेणं तेयलिपुत्ते केवली बहूणि वासाणि केवल परियागं
पाउणित्ता जाव सिद्दे ॥ ६६ ॥ एवं खलु जंबु ! समजेणं भावया महावीरणं तेतली पुत्र अनगार को वंदन नमस्कार कर अपना अविनय की पुन: २ क्षमा याची. यावत् नम्बामन से पर्युपासना करने लगा. ॥ १३ ॥ उस समय कनकध्वन राजा को तेतली पुत्र अनगारने
धर्म कहा ॥ ६४ ॥ कनकधज राजाने तेतली पुत्र की पान मे धर्म मुनकर पांच अनुबन, सात शिक्ष व्रत हरू। श्रावक धर्म अंगीकार किया. इस स बह श्रावक हुआ यावत् जीवाजीव का स्वरूा जानने वालाई
हुआ. ॥ ६५ ॥ तेतली पुत्र बहुन वर्ष पर्यन केवलि पर्याय पाल कर यावतु सिद्ध हुए. ॥ ६६ ॥ अहो 17जम्बू ! श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञातासूत्र के चउदहवा अध्ययन का यह अर्थ कहा. ॥ १४॥
अनुश-लब्रह्मचारीमान श्री अमोल ऋषिजी -
.फाश-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामादक
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