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पटांडताधर्मकथा का प्रथम श्रृतस्कन्ध
कर अपुवकरणं पविद्धस्स अणते अणुत्तरे णिव्याघाए णिरावरणे कमिणे पडिपुणे केवलवर जाण दमणे समुप्पणे ॥ ६ ॥ तएणं तेयलिपो गयरे अहास गहिं वाणमतरेहि देवेहिं देवदुदुहीओ समाहयाआ दसद्धवणे कुसमे णिवाइए दिव्य गीयंगंधमणिणाएयावि होत्या ॥ ६१ ॥ तएणं से कणगज्झए राया इमीमे. कहाए लट्ठ समाण एवं वयासी- एवं खल तेतलि अमच्चे मए अवझए मंडे भवित्ता पव्वतिए, तं गच्छामिणं तेयलिपुत्तं अणगारं बंदामि नमसामि पज्जु गसामि, एयमट्ट विणएणं भजो २ स्वाममि
॥६२॥एवं संपेहेइ २ चा हाए जाव चाउरंगिणीए सेणाए जेणर पमयवणे उजाणे जेणेव प्रवेश करते अत अनुत्तानिय त,निरावण, कृत्सव प्रतिपूर्ण केवल ज्ञान केल दर्शन उत्पन्न हुवा ॥६॥ उन पपय ताली नगर की पाप रहने वाले वाणव्यंतरदेवों ने देवदंदुरी बजाइ, पकिर्ण वाले अचित्त पुरुषों की दृष्ट की ओर दंपीत व दीव्य गंनिनाद किया. ॥ ३२ ॥ जब कनकमज राजा को इस बान की पाल। ईसब ऐसा कहो लगाकरे आध्यास तती पुत्र मुडा कर दीत आ. इस सतलों पर पानवर को वंदना नमस्कार करूं और मेग हा अविनय की मैं क्षमा याचू. ॥६२॥ ऐसा विचार कर सान किया चतरंगीनी सेना सहित प्रमदवन उद्यान में तेतकी पुत्र अनगार की १० माया
. तेतलीपुत्र. का चउदाचा अध्ययन
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