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________________ - + अनुवादक-कालब्रह्मचारी मुनि श्री अमे.लक अपनी देवलोगाओ आउवखएणं ठिईक्खएणं भवक्खएणं इहेव तेथीलपुरे गयरे तयलियरस अमञ्चस्स भहाए भरियाए दारगत्ताए पयायाए ॥ तमयं खलु मम पुस्ट्रिाई पंचमहन्वयाइ सयमेव उपसंपांजत्ताण विहारत्तर एवं संपहइ २ त्ता सयमेव पचमह च्वाई आरुहहरत्ता जणेव पमयवण उजाणे जणेव आमोगवरपायवस्स अहे. पुढवि मिलापट्टयास सुहणिसण्णस्म चिंतेमाणस्स पुब्वाहियाई सामाइयाई एकारस अंगाई चोदमपुगइ सयमेव अभिसमण्णागयाइं ॥ ५९॥ ततेणं तेयलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामणे जाव तयावराणिजाणं कम्माणं खउवसमेणं कम्मविकरण शुक्र देवलोक में देवतापने उत्पन्न हुवा. वहां से आयुष्य, स्थिति व भा का क्षय होने से यहां तेतलीपुर नगर में तेनली अपात्य की भद्रा भायां की कुक्षि में उत्पन्न हुवा. इस से पहिले उपदश कराये हो पांच अनुवा अंगीकार कर विचरना मुझे श्रेय है. ऐमा विचार कर पांच महा धारन कर प्रपदवन उद्यान में अशोक वृक्ष नीचे पृथ्वोशोला पर सुख से बैठे हुवे मन में चितवन करते पहिले अध्ययन र मामायिकाद अग्यारह अंग व च उदह पूर्ण स्वयंपा जानलिया ॥ ५२ ॥ ताली पुत्र अनगारको + शुभ परिणाम से यारत् तदावरणाय कर्म क्षयोपशम से कर्म का विकरण करनेवाला अपूर्व करण में .काकरामावादुर लालाभुखदवसहायजी ज्वाला प्रसाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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