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________________ अर्थ कहां ज्ञानधर्मकथा का प्रथम श्रन्य जो आढातिनो परियाणाति नो अब्भुट्ठेति ॥ सेयं खलु ममं अप्पाणं जीवियाओ रोवित्तर तिकट्टु ॥ एवं संपेइ २ ता तालपुडंविसं आसगंसि पक्खिति २ सेयं विसे नो संकमति ॥ ततेणं से नीलुप्पल जाव असिबंधंसि उहरेति तत्थविय से 'धागउ पल्ला ततणं से तेयलि जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छति २त्ता पासगं गवाए बधइ रूक्खदुरुहसि पासगं रुक्खंबंधइ २ अध्याणं मुयति, सत्थविय मे रज्जुच्छिन्ना ॥ तते से तेयलि पुत्त महति महालयसिल गवाए बधति अत्याह मतार पोरिसियास उदगसि अप्पाण मुयति, तत्थविसे थाहे जाए | तते से तेयलि सुक्कास तर्णकूडंसि सरकार किया नहीं यावत् आभ्यंतर परिषदा के लोगोंने भी मेरा आदर सत्कार किया नहीं इस से अब मुझे मरना श्रेष्ट है. ऐसा विचार कर तालपुट विष मुख में डाला परंतु उस विषने तेतळी पुत्र पर कुच्छ भी असर की नहीं ॥ ५४ ॥ र्फ र नीलोत्पल ममान यावत् अमिधारा से अपनी गरदन कटने लगा परंतु वह आभिधारा भी चली नहीं, फर अशोकवन में जाकर अपने गले में पास बांधकर वृक्ष पर चडकर और पाश को बृत की साथ बांध दी, वशं वह नीचे लटक गया परंतु पाश को काट दी [ गइ. फरतेतली पुत्र ने एक बडी शीला गले से बांध कर बहुत ऊड़ा कोई नहीं तीर सके वैपा पुरुष प्रमाण पानी में पडा, परंतु वहां स्थल बन गया और वहां से बच गया. फर उसने शुष्क तृण समुदाय एकविक Jain Education International For Personal & Private Use Only तापुत्र की चउदहवा अध्ययन 48 ५३९ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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