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काका
आणिकायं पक्खियति २ त्ता अप्पाणं मुपति तत्थति से अगाणिकाप विझाए ॥ ५५ ॥ ततण में तेतलिपुत्ते अमच्च एवं वयामी- सद्देय खलु भो समणा वयंति महेयं खल भो माहणा बयांत सहयं खलु भो समणमाहणा वयांत अहं एगो असहेयं बयामि- एवं खलु अहं मपुत्तहिं अपुत्ते, कामेदं महडिस्मइ महमित्तेहिं अमित्ते, कोमदं सद्दहिस्मद एवं अत्थणं दारण- दासणं पेमेणं- परिजणेणं- एवं खल
नलियुसेणं कणगज्झएग रन्ना अवज्झाए ममाणे, नालपुडगविमे आसगाम पक्खित्ते सेवियणी संकमांत, कामेदं सहहिस्मति, तथालपुसे निलुप्पल जाव स्वधंसि करके उसमें आने लगादी और उसमें स्वयं जाकर गीर पहा परंतु वह अनिकाय वुझगया ॥ ५५ ॥ अब तेतली पुत्र अमात्य ऐने बोलने लगा कि जो अपण कहते हैं का श्रद्धरे योग्य है, जो वाह्मण करने ” वा भी श्रद्धने योग्य है, जो श्रमण ब्रझग कहते हैं वह भी श्रद्धने योग्य है अर्थात् वे लोगों पुण्ण पाप स्वर्ग नरक बगैर कि जो किमीने देखा नहीं है। उनका उपदेश देने है वह श्रद्धने योग्य है परंतु मैं अकेला नो पोलना हूं उमे कैन श्रद्धगा, मैं पुत्र घाला होकर अपुत्र कहूंगा तो कौन मानेगा, मित्र वाला होकर चित्र सहित कहूंगा तो कौन मागा. ऐसे ही अर्थ, दाग, दास, प्रेष्यक परिजन वाला कर इन से रहित कहूंगा. तो भी की मानेगा. ऐसे ही?
बनुवादक-समचारीमान श्री
.का राजारादरमाला मदवमहायजा श्वालामलादी.
सार्थ
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