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* पोड़ ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतन्
करेति ॥ ततेणं से कणगज्झएराघा ! अणाढायमाणे तुसिणीए परम्मुहे संचिट्ठइ ॥ ५० ॥ ततेणं तत्तलि पुते कणगज्झयं विपरिणयं जाणित्ता भीए जात्र संजाय भए एवं क्यासीरुणं मम कणगज्झएराया, हीणेणं मम कणगज्झए राया, अवज्झाएणं मम कणगज्झएराया ण णज्जतिणं मम केणति कुमारेण मारहत्तिकहु भीए तत्थे जाब सणियं २ पश्च्चोमद्धत २ सा तमव आसखधं दुरुहति, तमेव आसवं दुरुहिता तेतलिपुरं मज्झे मज्झणं जेणेव सए गिहे तेणेत्र पहारेत्थ गमणाए ॥ ५१ ॥ ततं तेतलि पुचं जे जहा ईसर जाव पासंति ते तहा आढायंति
की
कनकध्वज
हाथ जोड राजा को परांगमुख बनकर रहे ॥ ५० ॥ बाहुबा जान कर बेतली पुत्र मन में हो बोलने लगा कि कनकध्वज राजा
सब तेतली पुत्रने कनकध्वज राजा आदर सत्कार नहीं करता हुआ
तथापि १६ कनकध्वज राजा को मुख परंपर रूष्ट हुए हैं, मेरे पर
दुष्ट हुए है और मेरे पर दुष्ट विचार वाल हैं इम मे न मालुम यह मुझे कौन से दृष्ट मार से मारेंगे य बालकर डरने लगा यात शनै: पीछे हटकर अपने घोडे पर सवार होकर तनली पुर नगर की बच [ में से होते हुवे अपने गृह आने लगा ।। ५१ ।। अब मार्ग में जो रामेश्वर वगैरह तेतली पुत्र को मीलते
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तेलीपुरका चदावा अध्ययन 48
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