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42 अनुवादक-चालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋमित्रो
हाए जान पायच्छित्ते आसखंधवरगए बहहिं पुरिसेहिं साई संपरिवूडे सातो गिहातो णिग्गच्छइ २ ता जेणेव कणगज्झएराया तेणेव पहारत्थ गमणाए ॥ ४६ ॥ ततेणं तंयलिपुत्तं अमच्चं जहा बहवे राईसर तलवर जाव पभिइउ पासंति ते तत्र आढायंति परियाणति अब्भुट्ठति सक्कारेइ समाणेइ अंजलि परिगहियं करति इटाहिं कताई जाव वागर्हि आलवमाणाय संलबमाणाय पुरतोय पिटुओय पासतोय मग्गओय समणुग. च्छति ॥४७॥ ततण स तेयलिपुत्ते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छइ॥४८॥ततेण से कणज्झए ततलियुत्तं ऐजमाण पासतिरत्ता नो आढाति ना परियाणाति, जो अब्भुटुंति
आणाढायाणे ३, परंमुहे संचिट्ठति ।।४ ९॥ ततेणं से तेयलिपुत्ते कणगझयस्सरन्नो अंजलि और घोडे पर स्वार होकर बहुत पुरुषों की मात्र परवरा हुवा अपने गृह से नीकलकर कनकध्ज राजा की । पास जाने लगा ॥ ४ ॥ तेली पुत्र को जो कोई राजेश्वर वगैरह देखमे ये वे सब उन को आदर सत्कार करने लगे. अपने स्थान स उठकर हाथ जोडने लगे, और इष्टकारी, कानकारी, यावत् बल्ग शब्दों घालने हुवे आगे, पीछे व दोनों बाजु के मार्ग में चलने लगे ॥ ४७ ॥ अब वह तेतली पुत्र कनकध्वज राजा की पाम गया ॥ ४८ ॥ तेनाली पुत्र को आता हुआ देखकर कनकध्वज राजाने उन का आदर सत्कार किया नहीं व खडे हुवे नहीं, परंतु पगंगमुम्ब बनकर बैठे ॥ ४९ ॥
नाशक राजाबहार बाळा सुखदवमहायजी ज्वालाप्रमादजी.
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