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पकाचक-राजावहारलाहा
परियायणिय परिकहेइ ॥ ३९ ॥ ततेगं ते ईसर क गगज्झयं कुमारं महया २ राघाभिसए अभिसिंचति ॥ ४० ॥ ततेणं से कणगज्झए कुमारे राया जाए महया हिमवंत जाव रज पालेमाणे विहरति ॥ ४१ ॥ ततेणं सा पउमावती देवी कणज्झयराय सदावेइ २ त्ता एवं वयासी-एसणं पुत्ता तवरले जाव अंतेउरेय तमंच तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्सप्पभावेणं, तं तुम तेतलिपुत्तं अमच्चं आढाहि, परिजाणाहि; सक्कारेहि, सम्माणहि, अन्भुढेहि, पज्जुवासेहि, वयंत पडिम
माहेहि, अहासणणं उवणिमतेहि भोगंच से अणुगड्ढेहि ततेणं से कणज्झए पउमावई का आय से इनि पर्यत सव कथन कह सुनाया. ॥ ३९ ॥ सब राजेश्वरने कनकध्वन कुमार का बड़ा । गज्याभिक किया. ॥४०॥अब वह कनकधज राजा हुआ, महाहिपर्वत समान गवत् राज्य की पालना करता हुचा विचरता था. ॥ ४२ ॥ पद्मावती राणीने कनकधज गजा को बोलाकर कहा कि अहो पुत्र! यावत् अंत:पुर मब तेली पुत्र अमात्य के प्रभाव से ही तुझे मीला है, इस से उन का अ.दर सत्कार
पान करना, उत्तम स्थान बैठाना, वचन स प्रशंसा करना, अर्ध आसन से निमंत्रणा काना, और 17 भोगों की वृद्धि करना. कनकधाज राजाने पावती देवी का कथन का स्वीकार किया और तेतली'।
अनुवादक-चाल ब्रह्मचारीमुना श्री अमेलक ऋपनी
महाजी स्वाधनमाविम
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