________________
4
५३.
यष्टांग ज्ञानाधाया काय साध 412
देवाणुपिया ! अत्थः केतिक नारे रायलक्खगसंपन्ने अभिमेयारिहे. तरण तुमं दल हि, जाणं अम्हे महया महया रायाभसेएणं अभिम्चिामो ॥ ३८ ॥ ततेणं तेयाल पुस अमच्चतलि ईमर पभितिए एयमद्रं पडिमणेति २ त्ता कणगज्झयकमारं व्हायं सवालकार विभूसिय जाव मस्मिरीयं करता तेसिं-ईसर जाव उ३वण्णेति उववणेत्ता एवं वयासी-सणं देवाणुपिया ! कगगरहस्स रन्नो पुत्ते पउमावईए अराए कणगज्झए णाम कुमारे अभिसेयारिहे गयलक्खणसंपन्ने, मएकणगरहस्स रन्नो रहस्मयं मंबर तं एयणं तुभे महया २ रायाभिसेएणं अभिसिंचह, सम्वं तेसिं पाये हो हो यावत् राज्य में धुरंधर हो, इम मे जो कोइ राज लक्षण बाला अनिषक योग्य मो कोई कुमार होचे तो श्राप दे जिन को हम राजा को येोग्य बहा राजगभिषेक करे ॥ ३८॥ नेतली पुत्र
मात्यने उन ईश्वर वगैरह मन की बात सुनी. फर कनकध्वज कुमार को स्नान कराकर सर्व अलंकार से विभूषित करके यावत् श्री युक्त करके उन लोगों को सम्मुख लाया. और कहा कि अहो देवानमिय! कनकरय राजा का पुत्र प्रभावतीदेवी का आत्मन राज लक्षण संपन व अभिषेक योग्य कनकध्वज नाम का यः कुमार है. मैंने इसे कनपन से गुप्त रीति से पटा किया है, तुम उन को अभिषक करों. इन
लेतलीपुत्र का उदहा अध्ययन 4Me
•
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org