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अम्हेणं देवाणुपिया । रायाहीण रायाहिट्टिया, रायाहीपकजा, अपचंग ततली पुत्चे अमचे कहणगरहस्स रण्णो सबटाणेसु सबभूमियापु लखपञ्चए दिनवियार सव्यकज बढाबएयावि हत्था॥ तं सेयं खलु अम्ह तेतलिपुत्तं अमचं कुमार जाइत्तए तिकटु ॥ अन्नमन्नस्स एयमट्ठ पडिसुति २ ता जेणव तेयलिपुत्री अमचे तेणेव उवागच्छति, तेबालपुत्त एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जेय रट्रेय जाव वियगति; अम्हेणं देवाणुप्पिया ! रायाहीणा जाव रायहीण कज्जा, तुम
चणं देवाणुप्पिया ! कणगरहस्स रन्नो सम्बठाणेसु जाव रज्जधूराचिंत्तए, तं जइण करता था. अपन राजा के आधीन, राजा के अधिष्ठित और राजा के आधिन रहकर कार्य करनेवाले है. यह सेतलीपुष अमात्य कनकरय राजा के सब स्थान में व सब भूमि में विभासनीय है, विचारवाला और सर कार्य की वृद्धि करनेवाला है. इस से वेतली पुष को कुमार के लिये कहना चाहिये.. सरने 48 बात मान्य की और सब मीलकर तंतली पुत्र की पास आय. और उन को ऐसा कहने लगे कि आगे देवानुपिय ! कनकरथ राजा राज्य, राष्ट्र वगैरह में मूछित बनकर जो पुत्र होते थे उन के अंगापांग
काडेदन कर उस को खगव बनाता था. अहो देवानुप्रिय हम राजा के बाधीन है यावत् राज्यकै आध.न 17कार्य करनेवाले हैं. अहो देवानुप्रिय ! तुम कनारथ राजा के सर्व स्थान में व सर्व भापे में विचार,
वादक-वासमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिना -
प्रकाशक-गजाबहादुर लाला मुखन्न महायजी ज्वाल प्रसादज..
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