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राजी
11}. मझणं जेणेव सुवया उबस्सए तेणेव उवागच्छइ.२ ता सीयातो पच्चोरुहइ२त्ता
पोटिलं परतो कटु जेणेव सुक्या अज्जा तव उबागच्छइ २ सा ददइ नमसइ वंदित्ता नमंमित्ता एवं वयामी-एवं खलु देवाणपिण्या ! मम पोहिला भारिया ! इट्टा ५;" एसणं संसार भउतिग्गा जाब पव्वतित्तए, पडिग्छंतु गं देवाणुप्पिया ! सिस्मिाण भिक्खै दलय मि. ॥ अहा दुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबधं करेह ॥ ३५ ॥ ततेणं “सा पोटिला. सुव्वयाहि अजाहि एवं वुत्तासमाणी हट्ठा तुट्ठा पुरच्छिमे दिमीभाए
सयमेव आभरणमल्लालंकार मुयह २ ना सदमेव पंचमुट्टियं लोथंकरेइ २ त्ता पहला नीचे उतरी. पोहिला को आगे करके तैनल पुत्र सब्रता आर्य की पास गये. 'उनको चंदना नमस्कार करके ऐसा बोले अहो देवानु प्रिय ! 'पोट्टे । भार्या मुझे इष्टः कांत यावत् मनोन है यह मंमारभय से. उद्विग्न पनी हुई यावत् आपको पाम दीक्षा लेना चाहती है ..अहो देवानु प्रिय ! आप को मैं शिष्यणी भिक्षा देना ई मो श्राप ग्रहण करे.. आर्याने उत्तर दिया. अहो देवानु प्रिय ! जैसे तुम को सुख हवे में वैसा करो. विलम्ब मत करो ॥ ३५ ॥ मुब्रता आर्या का ऐसा कहने पर पोट्टला इष्ट तुष्ट हुई, ईशानकून
में माकर सताने आमरण अलंकार नीकाल दिये और स्वताने पंचमुष्टिकाच किया. फोर मुव्रता आय.
अमुवादक-चालनमचारी मुनि श्री अमालक
पाजावहादुर कालाबदेवमहायजी ज्वालाममाद जी ।
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