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टांडवानाधकथाका प्रथम श्रत
यामी एवं खल देवाणप्पिथे ! तमं मद्धे भविता पतियाममाणी कालमा कालं किश्या अन्नयरसु देश्लोएस देवत्ताए उनजिहिति, तंजाणं तुम देवाणुप्पिए ! ममं ताओ देवलोयाओ आगम्म केवालिपातं धम्म बोहेहितोहं . विसजेमि ॥ अहणं तुम मम ण संवा सि तो ण विसाम ॥ ततेणं सा पाहिला तेयलिपुत्तस्त एयम पडिसुणेति ॥ ३४ ॥ ततेणं तेलिपत्ते विउळ असणं ४ उवखडावेहता मित्तनाइ जाव आमंतेति २ जाव सम्माणेति २ पाहिलं व्हायं जाव पुरिससहरसवाहिणीयस्म सीयं दुरुहहरसा, मित्तनाइ जाव परिवुडे सस्विट्टीए जाव रवेणं तेयालपुर मञ्झं से अहो देवानुप्रिये ! सुब मुंडिन बनकर प्रजित हुए पीछे कल के अवसर , काठ करके किमी
लोक में देवता रोचोगी. ओ देवानुप्रिये ! उस समय उम देवलोक में से आकर मुझे केवली पर पित धर्म । उपदेश देना तो मैं पत्रजित होऊंगा. यदि तू मुझे पातशेध नहीं देगा तो मैं नहीं निकलूंगा. पहिलाने नेतले पुत्र की इस बात का स्वीकार किया ॥ ४॥ उस सपय तेनले पुत्रने विपुल अशन.. पान, खादिम स्वादिय पार करायो फर पिशासि जनों को भामंत्रणकर यावत् पोट्टिता को मान
कर सहले पुरुष उडी म बसी शिठिाकर मित्र शानि वगैरह से परवरा दुवा ब २ शब्दों में से नेल पुर की पव-बीच में होते हुने सुनता पार्या का उपाश्रय वयं या वहाँ शिविका में से
18+ तली पत्र का चदवा अध्ययन 424
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