________________
अनुवादक बासनाचाराम श्री अमोलक पिजा +
वंदिता मंसित्ता पडिविसजेति तरण सा पोटिला समणोवासिया जाया जाव पडिल माणा विहरई॥ ३२ ॥ ततेनं तीसे पोटिलाए अनया कयाति पुवरत्ता वरत्त कालममयसि कुटंबजागरिय जागरमांणीए अयमेयारूवे अझस्थिए५समुसज्जित्था एवं खलु अह तलिपुत्तस्स पवि इट्ठा ५ आमि; इयाणि अगिट्ठा ५ जाव परिभोगा, तं सेयं खल मम सम्पयाणं अजाणं अंतिए पाइत्तर एवं महति २ ता कलं पाउ जेगेव तेयलि पत्त तेणेव आगन्छ। २त्ता करयल परिसग एव वयासी- एवं खलु देवाणुपिया ! मए सुबयाणं अजियाणं अतए धम्मे जिससे
जाव अब्भण्णुन्नाए समाणे पवितित्तए ॥ ३३ ॥ ततेणं तेयलिपुत्ते पोटिलं एवं को. सन बह पोहिला श्रपणे पामिका हुई यावत् जीवाजीव का सारा जाननी हुई य बत् च दह प्रकारका दान देनी हुवचरने लगः ॥३२॥ एकदा पाहिला कापूराित्रि में कुटुम्ब मागरणा जागते हुए पेना अध्यवसाय हुग में तलपुत्रकोपहिले इष्ट थी परंतु अब श्रीपरन् पेय भोग भोग भीनही चाहत हैं, उसम में मुब। बाकी पाम दीक्षित होना श्रेय है. एसा विचार कर प्रभात हाने तेतली पुत्र की पास गइ
मा ह य ज्ञाड .र ऐमा ब... अहो देवानुपिय ! मैंने सुत्रता अर्या को पास धर्म सुना है यावत् 7 आप की अनुशा हा तो मैं दीक्षित होना चाहती हूं ॥ ३३ ॥ तम वेतली पुत्र पाहिला को ऐसे है।
पकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादनी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org