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सूत्र
अर्थ
48-सवारीनि श्रा अमोलक ऋषिजी +
बहुणं समणमाहण जाय वणी मगाणं
दीयमाणाय देवावेमाणीय
विहरह
त्रिउलं
तेणं
॥ २६ ॥ ततेणं पहिला तेयलिपुत्तस्न अमचे एवं बुता समाणी हट्टु तेथलि पुत्तस्स एयमहं पडिमुति २ शा कज्ञः कलिं महाण संसि अनणं ४ आय देयमाणी देशत्रेमाणीय विहरति ॥ २६ ॥ क.ले गं तेगं समएणं सुनयाओ णामं अजिआओ इरिया समियातो जाव गुत्तबंभचारिणीतो बहुत्नुयाओ बहू परिवारातो पुत्रःणुपुवि चरमाणे जेणेत्र तेयलि पुरे जयरे तंत्र उपागच्छ २ चा अहापडिरूवं उग्गहूं उगिव्हइ २ चा संजमेणं
भोजनशाला में विपुल अनादि बन कर पण ब्रह्मण यावत् भिक्खारी को देती हुई व अन्य से दिलाती हुई रहे. ती पुत्र पास मे ऐसी सूनकर बढे पाहि इष्ट तष्ट हुई और उन के वचन का स्वीकार किया. यवत् प्रतिदिन भंजनशला में विपुल अशनादि बनाकर श्रमण ब्रह्मण यावत् भिक्ख को अशना दे दी हुई व अन्य मे दलानी हुई विचरने लगी ॥ २६ ॥ आयी इसी ख ेत बहु
'व ग्रामानुग्राम विचरतो तेसलीपुर नगर में आई, और वहा ययम तरूप
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उन काल उस ममय में सुना परिवार बाली पुर्वानुपूर्व चलती अवग्रह याचकर संयम व तप से
● प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी उदाराममाद
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