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काशक-राजाबहादुर
पउमावतीए मलंय दारियं पयाया ॥ २१ ॥ तएणं कणगरहे राया तीसे मल्लियाए दारियाए णीहरणं करेंति, बहूइ लोइयाई मय किच्चाई करेइ २ त्ता कालणं विगयसे ए जाया ॥३२॥ ततेणं से तयलि पुत्ते कल्लं कोडुबिय पुरिसे सहावेइ २ त्ता-एवं वयासीखिप्पामव चारगसालाए सहणं करह जाव ठिईवडिया,जम्हाणं अम्हे एस दारए कणगरहस्स रज्जे जाए तं होऊण दारए णामेणं कणगज्झए, जाव अलं भोगसमत्थेजाए॥२३॥
ततेणं सा पोटिला अण्णयाकयाई तेयलिपुत्तस्स. अणिट्ठा ५ जायायावि होत्था ॥ [B का प्रमय हुवा है ॥ २१ ॥ कनकरथ राजाने उप मृन पुत्री का निहारण किया. और बहुत लौकिक
न्यु कर्म करके बहुत काल पीछे शोक रहित हुए ॥ २२ ॥ अब तेतली पुत्रने प्रभात होते कौटुम्पिक पुरुषों को बोलाकर ऐसा कहा अहो दबानुपिय ! चारक शाला (जलखाना ) शुद्ध करो अर्थात् उन में से केदीयों को छोडदों. यारत् जैसे राजपुत्र का जन्मोत्सव होता है वैसे करो यावत् नाम स्थापना करो. हम को यह पुत्र कनकरथ राजा के राज्य में हुवा है इस लिये इम का नाम कनकध्वज रखो. सब प्रकार से पालन पोषण कर पांच धात्रियों से ड किया, पुरुष की ७२ कला का व राजनीति का अभ्यास कराया यावत् यौवन अवस्था को प्राप्त ह.ते भोग भोगने समर्थ हुवा ॥ २३ ॥ कितनेक सय पीछ एकदा नेतली पुत्र को पाहि या किसी कारण से आनेष्ट व अप्रिय होगई जिस से उस का नाम ग.त्र।
अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी +
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