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सूत्र
का प्रथम श्रनस्कंध कल
षटङ्ग तार्मको
एस दारगे उम्मुकचा भावे तत्रय ममय परमावतीएय आहारे भविस्सति चिकटु, पहलाए पास क्खिनि २ ता, पहिलाए पास ओ तं विनिहाय मात्रणियं दारियं गिण्हति गिव्हइत्ता उत्तारणं विहेति २ चा अंतंउरस्स अवधारणं अनुष्पविस्वति २ ताजे पउमाबाई देवी तेणेव उवागच्छति २त्ता पउमावतीए देवीए पात २ ता जाव पडिनिगगते ॥ २० ॥ ततंणं तीसे पउमावतीए अंग पडियारियातो पातं देवि त्रिणिद्दाय मात्रणियं च दारियं पासति २ ता जेणेव गगरहेराया तेणेव उवागच्छइ २ चा करयलं जात्र एवं बयासी- एवं खलु सामी !
इन से उन की गुप्त रोति में क्षा करते हुवे वृद्धि करना. जब वह पुत्र यौवनावस्था को प्राप्त होगा यह तुन को, मुझ पतीको अधभू होगा. यों कहकर उसे पाहिला की पान रखा और पं. हे की पास समृपुत्री लेकर उस अपने उत्तरीय सडककर अंतर के छठे द्वार से पझाती देवी की पास आया और उसे पद्मा
देवी की पान रखकर यावत् अपने स्थान गया ॥ २० ॥ पद्मवती देवी की अंग परिचारिका दयाको मृतपुत्री का प्रतत्र हुआ। देखकर कथा की पास गई और हाथ जोडकर बोलने लगी महामित्र ! पद्मावती देवी को मृत्री
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* तेती का चउदावा अध्ययन
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