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________________ अपीजी + पासनाचारी मुनि श्री मोलकर + गला जाब वियंगेत, अहं च देवाणुपिया ! दारगं पयाया तं तुम देवाणुपिया! एवं पारगं गिहादि जाव तवममाभवाभायणे भारिस्मा चिकटु, तय लपुतस्म हत्थे दलयत ॥ १९ ॥ ततेगं च तेयलिपुत्ते पउमावतीए हत्यातो दारगं गिण्हति । । उनरिजर्ण पिंहति ता अउरस्म रहस्तिषषं अवहारेणं जिग्गच्छति । त्ता जेणेव सए गिहे जगव पोटिला भारिया तेणेव उवागत २ ला पोहिलं एवं वयानी-एवं खलु देवाणुपिया ! कणगरहराया रजेय जाव बियंगेति, अयं वर्ण दगए कणगर हस्स पुत्तेय पउमावतीए दीए अत्तए तंण्णं तुमे देवाणुप्पिए । इमं दारगं कणा. रहस्त रहस्सिययं चंब अणुपुत्रेणं संरक्वाहिय संगोवाहिय सबड्डेहिय ॥ ततेणं पुत्र को ऐसा बोली कि कनकाय राजा यावत् अंगोपांग का छेदन करता है और मुझे पुत्र का जन्म 1 हुवा है। इस से पहोवानुप्रिय! तुम इस पग को ले जावो. या तुषको व मझे अधारभूत होगा.. काकर उस बालक को तेतली पुत्र केय दिया ॥ ११ ॥ पचासती गणी की पास स पुत्र में १पुत्रने अपरे उत्सर्गय समेलिया और अंत:पा के छांटद्वार में निकल 6अपने भाया. और अपनी व पोहिला स ऐसा कहने लगा कि अहो दबानु प्रिय ! कनकरय राजा पात्र उनके पुत्रों को भंगारंग से हीन करता है. पाकनकरथ रामा का पुष व पावती देवी का आत्मन ...कायकाजावरादुर लालासुखदवसहायणी चाला प्रमादज:० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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