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+ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समणस्स भगवओ. महावीरस्म अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जात्र थूलए परिग्गहे पचक्खाए,तंइयानिवि तस्मेव अंतिए सव्वं पाणातियं पच्चश्वामि जाप सवं परिग्गह पञ्चक्ख मि, जावजीवं सव्वं अमणं पाणं खाइमं साइमं पच्चक्वामि, जावजीवाए.जपियं इमं सरीरं इटुंकत जाव मा फपतु एयंपिणं चरमेहिं ऊमासेहिं वोलिगमि त्तिक॥३८॥ततेणं से दुदुरे कालमासे कालांकच्चा जाव सोहम्म कप्पे ददुरबडिमए विमाण उवाय सभाए दडुरदेवत्ताए उबवणे ॥३९॥ एवं खलु गेया ! ददुरणं देवेणं सा दिबादेवड्डी
लहा पत्ता अभिसमण्णागया ॥४०॥ दद्दरस्सण भते ! देवरस केवयतियं कालं ठनी स्वामी की पास से स्थूल प्राणातिपात यावत् स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान किया था. अब इन की पस जावनीव सब पण तिपात यावत् सब परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूं र जा.जीव मब अशन, पान. खादिम व व दिम का प्रत्यख्याम करता हूं. यह जो मेरा शरीर इष्टकारी, कंतकारी, पियकारी यावत् उसको किसी प्रकार की व्याधि मतों वैसा शरीर को भी चश्मि उश्व स श्वान पथन है त्यनता हूं ॥ ३८ ॥ अत्र दर्दूर काल के अवसर में काल करके यावत् सौधदेवलोक में दर्दु वितंसक है विपान में दईर देवरने उत्पन्न हुआ ॥ ३९ ॥ अहो गौतम ! दर्दुर देवने इ · तरह यह दीव्य दव ऋद्ध प्राप्त की है ॥ ४० ॥ अहो भगवन् ! द१र देव की कितनी स्थिति कही है ? अहो गौतम ! दर्दुर
काशगजाबहादर लाला मखदेवमहायजी ज्याप्रमा
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