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हत्थिखंधवरगते सकोरंट मल्लदामेणं छत्तेणं धारिजमाणेणं सेयवरच उचामराहि, मझ्या हयगयग्हय भडचडकर चा उरंगिणीए सेणाए सहि सपरिवडे ममपाववंदते हब्वमागच्छइ ॥३७॥ततेणं से दहरे सणियस्त रण्णो एगेणं आसकिसोरेण वामपाएणं अकंते समाणे अंतजिग्घातिए कयावि होत्था ॥३८॥ ततेणं से ददरे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार परक्कमे अधरिणिजमितिकट्टाएगतम कमति २त्ता.करयल परिग्गहियतिख तोसिरसावत्तं मत्थए अंजलिंकदृ एवं वयासी-मोत्थुग अरहताण भगवंताण जा। संपत्ताणं नमोत्थुणं
समणस्स भगवआ महावीररस मम धम्मायरियस्स जाव संपाविउकामरस पुबंप्पियणं मए बैठकर कोरंट वृक्ष के पुष्पों की मालावाला छत्र महित श्वेत वर्णवाले चार चामरों से विनाता हुआ बडे अश्व, गज, रथ । भट चेटक की चतुरंगिनी सेना सहिन परवरा हुवा मुझे वंदना करने को आता था ॥ ३७॥ वह मंड क श्रेणक राजा की अश्व किशोरी के बाये पांच मे दब या हुआ पायल मा और उम. के पट में से आंतरहीयों निकल गई ॥ ३८ ॥ अब वह मेंडक स्थाम, बल, वीर्य, पुरुषात्कार
व पराक्रम रहित होगा जिस से एकांत में गया. वहां दो हाथ जोडकर मस्तक से तीन बार आवर्त किया. ॐऔर, अंजली करके एमा बोला मोक्षको प्राप्त हो गये ऐमे अरिहंत भगत को नमस्कार होवो,मेरे धर्मचार्य यावत्
मोक्ष के कापी श्री श्रपण भगवंत महावीर को मेरा मस्कार हो, पहिले भी श्री अमण भगवन्त महावीर
48. षष्टांडवाताधर्मकथा का प्रथम श्रनस्कन्ध 42
442 नंदमणियार श्रष्ट का नेरहवा अध्ययन 42
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