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पटरांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 18
उबट्ठाणसाल तेणामेव उवगच्छइ२ सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सणिसण्णे धारिणी एदेवीए एवं अकाल दोहलं बहुहिं आएहिय उवाएहिय उप्पत्तियाहिय वेणत्तियाहिय कम्मियाहिय परिणामियाहिय चउविहाहि बुद्धिहिं अणुचिंतेमाणे २ तस्स दोहलस्स आयंवा उवायंवा ट्रिइंवा उप्पत्तिवा आदिमाणे आहयमाणसंकप्पे जाव ज्झियायइ ॥ ४२ ॥ तयाणं तरंचणं अभयकुमारे ण्हाए कयबलिकम्मे जाव सव्यालंकारविभूसिए पायबंदाए पहारत्थगमणाए ॥ ४३ ॥ तंएणं से अभयकुमारे जेव सेणिएराया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सेणिएरायं ओहयमाण संकप्प जाव झियायमाणं पससइ २ ता अयमेयारूवे अज्झात्थिर चिंतिए पत्थिए बाहिर की उपस्थान शाला में आये. और वहां सिंहासन पर पूर्वाभिमुख से बैठकर धारणीदेवी का अकाल मेधका दोहला पूर्ण करनेका हेतु उपाय औपपालिक,वैनैयिक कार्मिका व परिणामिक एसी चार प्रकारकी बुद्धिसे चितवने हुवे उस दोहला का लाभ, उपाय, स्थिति व उत्पत्ति की प्राप्ति नहीं होने से खेदितमनवाले हुवे यावत् आत ध्यान करने लगे ॥ ४२ ॥ तत्पश्चात् अभयकुमारने सर कीया पलिकर्म कीया यावत् सर्वालंकार से मिभूषित बने और श्रेणिक राजा के पांव वंदन को नीकले. ॥ ४३ ।। उस समय में अभय कुमार श्रेणिक राजा की पास जाकर श्रणिक राजा को आतध्यान करते हुवे देखकर ऐसा अध्यवसाय
4+8+ उत्क्षिप्त ( मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन 428
भारी
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