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सेहिं रोयायंकेहिं अभिभूए समाणे गंदाए पुक्खरिणीए मुच्छिते ४ तिरिक्खजोणिएहिं बद्धाए बद्धपए सेए अह दुहट वसट्टे कालमासे कालंकिच्चा,गंदा पं.क्खरिणीए ददुरीए कुत्यिसि दह रत्तए उवरणे ॥२८॥ ततेणं गंद मणियारजीव दद्दरीए गन्माता विणिमक समाण उस्मक बालभावे विण्णाय परिणय मेन्त जोवणुगमणुपत्त नंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे २ विहरति ।।२९॥ ततेणं गंदाए प.क्खारणीए बहुजणो ण्हायमाणोय, पाणियं पियमागोय,पाणियंच संवहमाणोय, अण्मणस्स एवम इक्खंति ४,धणणं देवाणुप्पिया ! गंदे मणियारे जस्सणं इमेयारूपा गंदा पोखरिणी चाउकोणा जाव
पडिरूवा ॥ जस्सणं पुरथिमिल्ले वणसंडे चित्तसभा अणेगखंभ तहेव चत्तारि सभातो गृद्ध बना हुया उक्त रोगों से पराभव पाकर तिर्यंच योनि का आयुष्य बांधकर काल के अबसर में काल कर उस है। नंदा पुष्करणी में मेंडकी की कुल में मेंडक पने उत्पन्न हवा ॥२८॥ अब यह मेंडक गर्भ से मुक्त हुने पोछे वाल्यावस्था में से योवन अवस्था को प्राप्त होकर नंदा पुष्करण में क्रीडा करता हा विचरता था. ॥२२॥ वहां न न करते हुो, पानी पीत हुवे व लेजात हुवे ऐने बहुत लोगों परस्पर एमा कहत
थे कि अहो देवानु प्रय! नंदपणियार को धन्य है क्यों कि उसने ऐमी चारकु॥ वाली चारस पुष्करणा 17 बनवाई हैं. इस की पूर्व दिश के बनखंड में अनेक स्तंभवाली चित्र समाव हो चार सभाओं बनाइ है इस
4- अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक iपजा
प्रकाशक-राजाबहादुर काला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रमाद जी
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