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4. पडझानाधकथा का प्रथम धनस्कन्ध व
पाएहिय, छलीहिय, वल्लीहिय, मूलहिय, कंदहिय, पत्तेहिय, पुप्फहिय, फलेहिय, बीएहिय, सिलियाहिय, गुलियाहिय, ओसहहिय, भेसजेहिय, इच्छंति. तो सोलसण्हं रोयाकाणं एगमवि रोयायंक उवममित्तए ना चवणं संचाएति, उत्सामित्तए ॥ २६ ॥ ततणं बहवे वेज्जाय,जाहे नो मंचाएति,तसिं सोलसण्हं रोगाणं एगमवि
रोगायकं उसामित्तए, ताहे संता तंता जाव पडिगया ॥२७॥ ततेणं गंदे तेहिं सोललिये स्नान, अनुवासना, वस्ति कर्म, निरूध, सिरावध, तर्पण, पुटपार्क, छल्ली, बल्लो, मूल, कंद, पत्र, पुष्प,., फल, बीज, सिलिका, गुटिका, औषध व भैषज्य में उप नंद मणिभार अष्टि के मोलह रोगों उपशमाने को चाहा परंतु उन में से एक रोग भी मिटाने को समर्थ हुए नहीं ॥ २६ ॥ जब वे वैद्य या,त् कुशल पुत्रों उन मोलह रोग में से एक भी रोग उपशमाने का समर्थ हुवे नहीं तब वे तप्त व दुःखित होकर पीछे गये. ॥२७॥ अब वह नंदमःणयार उस नंदा पुरुरिणि मूछन व
41. 'नंटमणियार श्रेष्ट का नेचा अध्ययन rity
. १ चमयंत्र से अधोद्वार में तैलादिक औषध का प्रक्षेप करना, २ चर्म लपेटने के लिये मस्तकादिक को तेल का मर्दन करमा अथवा अधोद्वार से वायु का प्रक्षेप करना, ३ चर्म के यंत्र से निःकेवल 'द्रव्य अधोद्वार में डालना, ४ नाडी
में से रुधिर निकालना, ५ चिकिस्सापाले द्रव्य से मसलाना, ६ कणक को विट कर अग्नि में पकाना, ७ रोहिणी प्रमुख 3 औषधि, ८ घेल..
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