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तचाप छोसेणं घोम्ह जाव पच्चप्पिणह ॥ तेवि तहेव जाव पच्चप्पिणंति ॥ २५ ॥ ततेणं गयगिहे इमेयारूने घोमेणं सोचा निसम्मं बहवे विजाप विजपुत्ताय जात्र कुमलपुत्ताय सत्थकोस हत्थगयाय सिलिया हत्थगयाय गुलियाहत्थगय य उसह भेसज्ज हत्थगयाय सएहि २ गिहेहितो णिक्खमति, गिहहिंतो णिक्खमत्ता रायागहं नगरं मझमझेणं जेणेव णदस्स मणियार सट्रिस्स गिहे तेणे उवागग्छड २त्ता मंदस्स मणियार सरीर पासंति २ तास रोययंकाणं नियाणं पुच्छंतिरत्ता गंदरस मणियारस्म बहूहिं उबटुंगोहिय उवहणेहिय सिणेहपाणहिय, बमणेहिय. विरेयगेहिय सेयणहिय अदहणीहय, अवदण्हाणेहिय, अणुवासहिय
वत्थिकम्महिय, निवेहिय, तत्थणाहिय, पत्थणाहिय सिराहिय, तप्पणाहिय पुड पीछी दी ॥ २५ ॥ राजगृह नगर में ऐमी उद्घपणा सुनकर बहुत वैद्य, वैद्यपुत्रों, यानम् कुशलपुत्रों के हाय में कापतप के शस्त्र की थेली, भस्म बनाने के लिय शिलिका, बहुस वस्तुओं की बनाइ हुई गोली, और औषध भैषज्य लेकर अपने २ गृह से नीकलने हुवे गजगृह नगरी की मध्य बीच में होकर नंद मणिभार
श्रेट के घर आये. नंद मणिर का शरीर देखा, इन के रोगों का निदान पूछा फोर बहुन उपरपन. 17मर्दन, स्नेहपान ( औषध पान ) वमन, विरेचन, सोद निकालना, दद्दन (डाम) भूनादि निकालन के
मनवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमारक ऋषिजी
+काशक-राजाबहादुर कालावटवमहायजी ज्वालाप्रमादजी+
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