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कण्णवेयणा, कंड़य, उदरे, कोढे ॥ २४ ॥ ततेणं से गंदे मणियारे सोलमहिं रोयायकेहिं अभिभूएनंगाणे कोडंघिय परिसे सदावेइ, के डबिय पुरिसे सद्दावेइत्ता एवं बयासी गच्छहगं तुब्भे दवाणुप्पिया ! रायगिहे जयरे सिंघाडा जाव महापहेतु महथा २ सद्दणं उग्बानमाणा २ एवं वयह-एवं खलु देव णपिया ! दरम मणियारस्म सरीणमि सोलस रोयायंका पाउभया, तंजहा सास, जाव कोढे, ते जोणं इच्छांत देवाणु पिया ! विजावा विज पुत्तोत्रा जाणु उवा २ कसलोवा २
दस्म मणियार मेट्रिल ते.सं चग सोलसह रायायंकाणं एगमवि रोयायंक उत्साभित्तए तस्मणंद मगियारे विउल अत्थसंग्याण दलयति तिकटु दाचंपि और १.६ कोढ ॥ २४ ॥ अब नंद मारने सोलह प्रकार के रंगों में पर भा पार कौट माक पुरुषों को वोलाय और कहा. अहो देशानुमिय'! तुप राजगृह नगरी के श्रृंगाटक यात् गजमार्ग में जाओ और बडे २ शब्द मे उदूघपणा करो कि नंदमणिभार श्रेष्ठ के शरीर में सोलह प्रकार के' गंग प्रगट हुए हैं, इस से जो कोई वैध, वैद्य पुत्र, ज्ञायक अथा कुशल पुरुप संलह प्रकार के रोग में से
एक भी रेग उपशमाने को चाहता हो उन को मंद मणिपार श्रष्ट बहन धन देखेंगे. इस तरह दो 1/तीनवार उद्घोपणा करो यावत् मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो. जनोंने भा वैसा ही किया यात् अज्ञा |
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नंदमणिपार श्रेष्ठ का ताहमा अध्ययन righ
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