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4.2 अनादर गालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पनी:+
जम्म जीवियफले दस मणियारस ॥ ततणं रायगिहे सिंघाडग जाव बहुजणी अन्नमन्नस्स एकमाइक्खति ४, धन्नेणं देवाणुप्पिया ! गंदे मणियारे सोचत्र गमउ जाव सुहसहणं विहरति ॥ २२ ॥ ततेणं से गंदे मणियारे बहुअणस्स अंतिए एयरटुं सोच्च। निसम्म हट्टतट्टे धारहयकयंबकंपिय समुस्मीय रोमकूवे परंसाया सोक्खमणभत्रमाणे विहरति ॥ २३ ॥ ततणं तस्म दस्म मणियार मेट्रिरंस अन्नयाकयाइ सरीरगान सोलसरोयायंका पानभूया तंजहा-सासे, खासे, जरे, दाहे,
कुच्छिमूले, भगंदरे, हरिसा, अजीरए, दिट्ठीमुलं, मुहमूले अकारए, अस्थिवे या, का मनुष्य जन्म अच्छा प्राप्त हुआ है. राजगृह नगर के श्रृंगाटा यायत बहुत मनुष्यों भी परस्पर उपयुक्त बात चीत करन लगे ॥ २२ ॥ यह ले गो की प स से एग सुकर मंद मणिभार हृष्ट तुट हुा. उनके रापांच धारा से हणाया हुवा कलंच वृक्ष जमे हे गये, यावत् परम सुख अनुभनना हुवा विचरने लगा ॥ २३ ॥ एकदा नंद मणि भार के शरीर में सोलह प्रकार क राग प्रगट हुए. जिन के नाम-१ श्वास, १२ खासी, ३ ार, ४ दाह, ५ कुक्षिशूल, ६ भगंदर, ७ हरम (मसा), ८ अजीर्ण, १ ने ११० मस्तकशूल, ११ अन्नार अरु च, १२ च की वेदना, १३ कर्ण वेदना, ५४ खुनली, १५ जलोदर,
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखद वमहायजस ज्वालाप्रसादज.
अर्थ
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