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________________ न ४२७ 446 षष्टांग नारथी का प्रथम श्रतस्कंध सउणिगणरुवारीमयसंकुलेसु सुहसुहणं अभिरममाणा २. विहरंति. ॥ २१ ॥ ततेणं नंदाए पोखरिणीए बहुजणा व्हायमाणाय पियमाणोय; पाणियं च संवहमाणो । य, अन्नमन्नं एवं वासी- धन्नेगं देवाणु पया ! गंद मणियारमेट्ठी कयत्थं जात्र जम्म जीवियफले, जस्मणं इमयारूया गंदा पोक्खारिणी चउकोणा जाव पडिरूवा ॥ जस्सणं पुरथिमिल्ले तंचव मव्वं चउसुवि वणसंड जाव रायगिहणयरावे जिग्गओजत्थ बहु जणो आमणेसुय सरणेतुय मन्नि मन्नोय संतुयट्ठोय, पेच्छमाणोय साहेमाणोय सुहंसुहेणं विहरति ॥ तं धन्ने कपत्थपुन्ने कयाणं लोया सुलदमाणुस्सए नार मंजन दे, लीला करते हुवे अनेक पक्षियों के शब्दवाली पुष्करणी व चारों वनखण्ड में आनंद करने हो विरते थे ॥ २१ ॥ नंदा पुष्करणी में बहुन मनुष्यों स्नान करते. पानी पीते, पनी ले जाने पासर ऐमा बोलने लगे कि नंद पणिभार अंकता है यावत उन का जीवित सफल है. 4 उौने चार कोली यावत् प्रतिरूप यह नंदा पुष्करणी बनव इ है. इस की पूर्व दिशा के वनखण्ड वित्रशाला इनवाइ यावत् वर्ग बहा लोग आसन शयन पर बैठकर संतुष्ठ होते हैं और उसे देखने हुवे यारत गीत गान मनते हुवे सुख पूर्वक विचरते हैं. इस से नंद पणि भार श्रेष्ठ कृतार्थ है यावत् उप 4. नंदमाणवार श्रका बारहवा अध्ययन 42 अ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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