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________________ Pro ॥ १८ ॥ तंतेण गंदे उत्तरिल्ल वर्णसंडे गए महं अलंकारियसभं कारावेइ अंणग खभसय जाव पडिरूवं ॥ तत्थणं बहवे अलंकीरय मणुस्सा दिनभइमर बहुणं समणाणय, अणाहाणय, रागी. गिलाणाणय दवलाय अलकारियकम्म करमाणा विहरति ॥ १९ ॥ ततेणं गंदा पोक्खरिणीए बहवे सणाहाणय अणाहाणय, पंथियाय,पाइयकरोडिकाय तणाहारा,पत्ताहारा, कट्टाहारा, अप्पगतिया व्हायति, अप्पेगतिया पाणियंपियंति,अप्पेगतिया पाणियं मवहति,अप्पगतिया विसजिय संय-जल्ल-मल्लपरिस्समाणिदखु पिवासा सुहंसुणं विहरति ॥ २० ॥ रायगिहवि जिग्गउवि तत्थ बहुजणो किंते जलरमण विविह मजणकय लीलया घरय कुस्तुम पत्थरय, अणेग से उत्तरदिशा के वनखंड में एक अलंकारशाला (नापित की शाला) स्थापन की थी. उस में बहुत नापित लोगों को वेतन देकर रख थे और वे बहुत श्रमण, मारण, अनाय, रोगी, ग्लानि व दुर्बल का क्षर. करते हुये विचरते थे. ॥ १९ ॥ नंदा पुष्करणी में बहुत सनाथ, अनाथ, पथिक, कावधारी, तृण लेजाना वाले, पत्र व काष्ट उठानाले कितनेक लोगों मान करत थ, कितनेक पानी पीते थे, कितने पानी लक्ष जाते थे, और कितनेक स्वेद, मैल, परिश्रम, निद्रा व पिपासा का त्याग करते हुवे मुख पूर्वक विचरते थे 17॥२० ॥ राजगृह नगर के लोक बाहिर आकर क्या करने में से कहते हैं-जलक्रीडा, विविध प्रकार के अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ..प्रकाशक-गजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजीज्वालाममाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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