SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - 4 ५०३ + नंदमणवार टांगताधर्मकथा का प्रथम श्रनस्कन्ध जाव जम्मजीषिय फले ॥ ३० ॥ ततेगं तस्स ददुरस्म अभिक्खगं २ बहुजणस्म अंतिए एयमटुं सोचा णिसम्म इमेयारूवे अज्झ त्थए जाव समुप्पजित्था-कहिमन्ने मए इमेयारूचे सद्दे निमंते पुढो तिकट्ट, मुग भींगामेणं जाय जाइमरण "समुप्पन्न, पुवजाति सम्म सम गच्छति ॥ ३१ ॥ ततणं तस्म दहरस्स इमेयारूचे अझास्थिए ५ एवं खलु अहं इहेव रायार्गहणयरे 4.दे गाम मणियार होत्था अड्डे जाव अपरिभूए तेणं कालेणं तणं समएणं रमणे भगवं महाधीरे समासढे, ततेणं मए समणस्स भगओ महावीरस्त आंतेए पंचाणुब्बतियं सतसिक्खावतियं जाव से इन का जीवन फल है. ॥ ३ ॥ उस पुष्ाण रहे हुने पेंड को बहुत लोगों की पास से ऐमा सुनकर एता अध्यवसाय हुवा कि मैंने एरे शक परे सुने हैं. यों काते हुवे शुभ परिणाम से यावत जाति स्परण शन हुवा और अपना पूर्व भव मासेजना ॥३१॥ उस दर्दुर को ऐमा अध्यवसाय में :हुना कि मैं रामगृह नगर में नंदपणिार ऋद्धवंत यावत् अपराभूा था. उम काल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर सामी पधार थे, उस समय मैंने अपण भगवन मह वीर स्गमी को पास पांच अनुव्रत व सात शिक्ष'त. यावत् अंगीकार कियेथे तत्पश्चात वहां मुझे साधु का दर्शन नहीं होने से यावत् मिथ्यावर अथ ले-का-तेरहवा अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy