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________________ अर्थ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलस अमिजो र तेणं समएणं सोहम्मेकप्पे ददरबडिंसए विमाणे सभाए मुहम्माए ददुरसि सहिासणांस दबुरे देवे चउहिमामाणिय साहस्सीहिं चउहिं अग्गमाहसीहिं सपरिसाहि एवं जहा सूरियाभो जाव दिवाति भोगभागाति भुजमाणे विहरति ॥ इमं चणं केवलकप्पं जबद्दीव विउलेणं ओहिणा आभाएमाणे २ जाव नविहं उवदसित्ता पडिगते ॥ जहामरियाभे ॥ ३ ॥ भंतेति भगवं गोयमे समणं भगव महावीर वंदति नमसति बंदित्ता नमप्तित्ता एवं बयासी-अहोण भंते ! ददुरेदेवे महिड्एि ६, ददुरस णं भंते! अवग्रह याचकर संयम व सप से आत्मा को भावते हुए विचरने लगे ॥६॥ उस काल उस समय में सौधर्म देवलोक में दर्दुरावतंसक विपान की सुधर्मा समा में दर्दुर सिंहासन पर दर्दूर देव चार हजार मामानिक चार अग्रमहिषी व उन की परिषदा वगैरह जैसा रायप्रसेणी सूत्र में सूर्याभ देवता समान यावत् दीव्य भोगोपभोग भोगते हुए विचरता था. उसने अवधि ज्ञान लगाकर श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में राजगृही नगरी के गुणशील उद्यान में विराजमान देखे जिसमे अपने सब परिवार महित विमान में बैठकर आया, यावत् बत्तीस प्रकार का नाठ ॥ बताकर पीछा गया, वगैरह मच कथन मूर्याम दवता जैसे कहा ॥३॥ भगवन्त गौतम स्वामी श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर कहने लगे कि अहो भगवन् ! यह दर्दुर देव महर्द्धिक है. - इम की ऐसी ऋद्ध कहां चली गइ ? अहो गौतम ! कूटाकार शाला जैप्स शरीर में उस का प्रमावेश होगया. इस को ऐसी दीय पराशक-राजाबहादुर लाला मुखदवमहायजी ज्वालाप्रसादजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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