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सूत्र
अर्थ
4+ षष्टङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रतस्कन्ध 488+
॥ त्रयोदश अध्ययनम् ॥
जतिणं भंते ! समणेणं भगवमा महावीरेणं जाव संपत्तेणं बारसमरस णायज्झयणस्स अमट्ठे पन्नत्ते, तेरसमस्सणं भंते ! णायज्झवरूप समणेणं भगवया महावीरेण जात्र संपते के अट्ठे पण ते ? ॥ एवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जयरे, सेणिएराया, रायगिहस्स णयरस्स उत्तरपुरत्थिमदिमीभाए गुणसिलए चेइए॥ १ ॥ तेगं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे चउदसहि समणसाहस्सीहिं जाव सद्धिं पुत्राणुपुत्रि चरमाणे जाव जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेत्र समोसढे, अहार डिरूवं उग्गहं उगहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ २ ॥ तेणं काल
श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञाता सूत्र के बारहवा अध्ययन का यह अर्थ कहा तो अहो भगवन् ! श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने तेरहवा अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? अहो जम्बू ! काल उस समय में राजगृह नगर था. उस में श्रंणे राजा राज्य करना था. उस राजगृह नगर की बाहिर ईशानकून में गुणशील उद्यान था ॥ १ ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी चिउदह हजार साधु की साथ पूर्वानुपूर्व चलते हुवे यात्रतू गुणशील उद्यान में पधारे. वहां यथा प्रतिरूप
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* नंदमणियार श्रेष्टि का संरहवा अध्ययन 4
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