SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . त्र अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनी श्री अमोलक ऋषिर्जी उववेह जाव अभिसिंचति जाव पवातिए ॥ २४ ॥ ततेणं जियसन्तु एकारस अंगाई अहिजेति बहाणि वासाणि परियायं पाउणिचा, मासियाए जाव सिद्धे॥ततणं मुबुद्धी एक्कारस अंगाइ, बहुाण वासणि, आव सिद्धे ॥ २५ ॥ एवं खलू बु ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं वारसमस्स णायज्झयणस्त अयम पण्णत्ते ॥ तिबति ॥ बारसम णायज्झयणं सम्मत्तं ॥ १२ ॥ गाथा ॥ मिच्छत्तमोहिमणा पावपसत्तावि पाणिणो विगुणा ॥ फरिहोदगंच गुण, णो हति वरगुरुषसायाआ इति बारसम गायज्झयणं सम्मत्तं ॥ १२ ॥ कुमार को राज्याभिषेक करो यावत् किया और वे दोनों दीक्षित हुए ॥ २४ ॥ जित शत्रु राजाने अग्यारह अंग का अध्ययन किया. बहुत वर्ष पर्यंत साधु की पर्याय पालकर एक मास की संलेखना से यावत् सिद्ध हुने. सुबुद्धि प्रधान भी अग्यारस अंग का अध्ययन कर बहुत वर्ष साधुपना पालकर यावत् सिद्ध हुए ॥ २५ ॥ अहो जम्बू ! श्री श्रपण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञाता सूत्र के पारख्या अध्ययन का उक्त अर्थ कहा. यह वारहवा अध्ययन संपूर्ण हवा ॥ १२॥ उपसंहार-मिथ्यात्व से जिस का मन मोहित हुनाले से पपाप में प्रसक्त जीवों गुण रहत होने पर मी सद्गुरु के प्रसाद से खाद के पानी जैसे गुणवाले होते. या पारावा अध्ययन संपूर्ण वा ॥१२॥ क राजाबहादुरलाला मुखदवसहाय वालाबादमी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy