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+ अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक रिजाल
. अणुन्न ए जाय फवइत्तए ॥ ३८ ॥ ततेणं जियसत्तु सुवाई एवं क्यासी- .
अच्छसु ताव देवःणुपिया ! कतिवयाति वासाति उरोलाति जाव भुजमाणा, तलो पच्छा एगयातो थेराण अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वतिरसामो ॥तलेणं सुकुद्धी जियस : त्तुस्स एयमट्ठ पडि मुणेति २ ॥ १९ ॥ तलेगं जियसत्तुस्स रन्नो बुद्धिणा सद्धि विपुलांति मण्णुस्सगाई जाव पञ्चणुब्भवप्राणरत दुवालस वासाति वीतिवंताति ॥ २० ॥ तेण कालेणं तेणं समएणं थेरा गमणं जियसत्तू धम्म सोच्चा, एवं जं
णवरं देवाणुप्पिया ! सुबुद्धि अमचं आमतेमि, जट्ठ पुत्तं रज्जे वेमि, ततेणं तुब्भणं मुझ इच्छित है मैं संसार भयसे गंद्वग्न बना हुवा यावत् आप अनुज्ञा देवे तो मैं दीक्षा अंगीकार करना चाहता हूं ॥ १८ ॥ तब नितशत्रु राना सुबुद्धि धान का एमा कहने लग कि अहो देवानु प्रिय ! थंडे वर्ष तक भोग में गत हुने रहो तत्पश्चात् अपन दोनों माथ स्थगिरा की पास मुंडन बन कर विचरेंग. सुवढे प्रधामने जितशत्रु का इस कथन को स्वीकार किया ॥ १९ ॥ नितशत्रुधराजाको सुबद्ध की साथ मनुष्य संबंधी भोग भोगते हुवे बारह वर्ष व्यत त हुवे ॥ २० ॥ उस काल उस समय में स्थविर पधार जिन शत्रु राजा धर्म मुनकर स्थविरों को बाले कि सुबुद्ध प्रधान को बुलाकर ज्येष्ठ पुत्र को राज्याभिषेक
प्रकाधक-सजावट दर लाला मुखदव महायजी ज्वाल.प्रसादजी.
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