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षष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
से धारिणीदेवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी णो अढाइ णो परिजाणइ तुसिणीया सीचट्ठइ ॥ तएणं से सेणिएराया धारणीदेवीं दोचंपि तच्चपि एवं वयासी-किण्णं तुम देवाणुप्पिया ! ओलग्गा जाव झियायसि ?॥ तएणं साधरिणीदेवी सेणिएणरण्णा दोचंपि तच्चपि एवं वुत्तासमाणी णो अढाइ णो परिजाणइ तुसिणीया संचिटुइ॥३९॥ तएणं सेणिएराया धरिणी देश सवह साविय करेइ २त्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं देवा णप्पिए ! अहमेयस्स अटस्स अणरिह सावयणयाए. ताणं तमं ममं अयमेयारूवं मणोमाणसिय दुक्खं रहस्सिकरेइ ? ॥ ४० ॥ तएणं साधारिणीदेवी सेणिएणं रण्णा
सवहसावियाणी सेणियरायं एवं वयासी-एवं खलु सामी. ! ममतस्स उरालस्स जाव करती हो? ॥३८॥श्रेणिक राजाने ऐसा कहा ताईपि धारणी देवीने उन केवचन मान्य कीये नहीं और मौन रही. फिर भी श्रेणिक राजाने दो तीन वखन धारणी देवी को कहा के अहो देवानुप्रिय ! किस कारन से तू आर्तध्यान करती है ? इस तरह दो तीनवख्त कहने पर भी धारणी देवीने उन के बचन मान्य कीये नहीं और मौन रही ॥३९॥ फोर श्रेणिक राजाने धारणी देवी को शपथ (सोगंद) देकर ऐसा बोले, अहो देवानु-१ मिय ! किस कारन से तू मुझे यह बात नहीं कहती है और उस से तू ऐसा मानसिक दुःख मन में ही सहन करती है ? ॥ ४० ॥ जब श्रेणिक राजाने धारणी देवी को शपथ दीया तब वह श्रेणिक राजा को
428+ उत्क्षिप्त ( मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन 4882
भावार्थ
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