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सूत्र
भावार्थ
403 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
तरियाओ दासचेडियाओ धारिणीदेवीए अणाढाइजमाणीओ अपरियाणमाणीओ ata संभंताओ समाणीए धारिणीदेवी अंतियाओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव सेणिएराया तेणेव उरागच्छइ २ त्ता करयलपरिग्गहियं जाव कट्टु जएणं विजएणं बाइ २ एवं वयासी एवं खलु सामी ! किंपि अज धारिणीदेवी ओलग सरीरा जाव अटुज्झाणोत्रगया झियायए ॥ ३७ ॥ तरणं सेणिएराया तासि अंगपडियारियाणं अंतिए एयमहं सोच्चा निसम्म तब संभते ! समाणे सिग्घं तुरियं श्ववलं वेइयं जेणेव धारणिदेवी तेणेत्र उवागच्छइ २ त्ता धारिदेवीं उलुग्ग सरीरा जाव अज्झाणोवगया झियायमाणि पासइ पासित्ता, एवं व्यासी- किण्णं तुमं देवामिया ! ओग्गासरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया झियायसि ? ॥ ३८ ॥ तणं असंस्कार पाई हुई सभ्रांत बनी हुई वे धारणी राणीकी पाससे नीकलकर श्रेणिक राजाकी पास आई और हस्तद्वय जोडकर जाव विनय से वधा कर ऐसा बोली- अहो साभिन्! आज धारणी देवी नमालुम किस करन से दुर्बल {शरीरवाली यावत् आर्तध्यान कररही है ||३७|| तत्र दासियों की पास से ऐसा सुनकर श्रेणिक राजा वैसे ही संभ्रांत चित्तमे शीघ्रता से त्वरित धारणी देवीकी पासगया और धारणी देवीको यावत् आर्तध्यान करती हुइ देखकर ऐसा बोले- अहो देवानुप्रिय ! आज किस कारन से तुम दुर्बल शरीखाली यावत् आर्त ध्यान
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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